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कविता

एक बच्ची ने

प्रेमशंकर शुक्ल


एक बच्ची ने
धरती पर सूरज बनाया
और मारे खुशी के झूम उठी
देखते-देखते माटी में धूप गमक गई
लखते हुए यह
आसमान में खिलखिला उठा सूरज

लड़की ने जिन लकीरों में
किरनें रचीं
लड़ने लगीं वह अँधेरे के खिलाफ

निहार-निहार यह
सूरज ऊर्जा से भर गया और
उसका हृदय हुआ उच्छल अथाह
उस दिन सूरज को सृष्टिपिता होने का अप्रतिम गौरव मिला
और वत्सल उगलियों के स्पर्श से
भीगा रहा सारा दिन वह!

 


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